इस संसार में अनेक प्रकार के लोग रहते हैं। जिनका व्यवहार, कार्य करने का ढंग अलग अलग होता है।और इसी संसार में कुछ लोग ऐसे होते हैं जो कार्य को मध्य में छोड़ देते हैं। तथा कुछ ऐसे भी होते हैं। जो कार्य करना ही नहीं चाहते। लेकिन इसी समाज में, इसी संसार में, कुछ ऐसे लोग भी हैं । जो कितनी भी समस्याएं आएं । वे अपने कार्य पूरे किए बिना नहीं छोड़ते। अर्थात वे अपने कार्य को अंतिम परिणाम तक पहुंचा ही देते हैं। इस श्लोक के माध्यम से इस सामजिक परिदृश्य को प्रकशित कर रहे हैं राजा भर्तृहरि –
प्रारभ्य विघ्नविहिता विरमन्ति मध्याः ।
विघ्नैः पुनः पुनरपि प्रतिहन्यमानाः
प्रारभ्य चोत्तमजनाः न परित्यजन्ति ।।
श्लोक वाचन
सामान्य अर्थ –
निम्न लोग समस्यायों विघ्नों के भय से कार्य प्रारम्भ ही नहीं करते । माध्यम श्रेणी के लोग कार्य प्रारम्भ करके विघ्नों के भय से मध्य में छोड़ देते हैं । विघ्नों के बार बार आने पर भी उत्तम श्रेणी के लोग एक बार कार्य आरम्भ करने के बाद कार्य को नहीं छोड़ते । जब तक कि कार्य अपने परिणाम तक न पहुँच जाए ।
भावार्थ –
प्रस्तुत श्लोक में राजा भर्तृहरि ने समाज के अनुभवों के आधार पर लोगों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया है ।
- निम्न श्रेणी के लोग
- मध्यम श्रेणी के लोग
- उत्तम श्रेणी के लोग
इन तीन श्रेणियों के लोग अपने कार्य किस प्रकार करते हैं उनकी कार्यशैली को भी बताया है।
निम्न श्रेणी के लोग
निम्न श्रेणी के लोग विघ्नों के भय से कार्य का आरंभ ही नहीं करते। अतः उनके कार्य प्रारंभ होने से पूर्व ही समाप्त हो जाते हैं। और यदि कार्य प्रारंभ ही नहीं होगा तो उसका परिणाम कैसे प्राप्त होगा।
मध्यम श्रेणी के लोग
मध्यम श्रेणी के लोग कार्य का प्रारंभ तो करते हैं। किंतु विघ्नों के भय से अर्थात समस्याएं आने परअपने कार्य को मध्य में ही छोड़ देते हैं।
जिससे उन्हें वांछित परिणाम प्राप्त नहीं होता। क्योंकि परिणाम तो कार्य पूर्ण होने पर ही प्राप्त होता है।और जो व्यक्ति कार्य को मध्य में ही छोड़ देता है। उसे ना तो परिणाम प्राप्त होता है । और उसका परिश्रम भी बेकार हो जाता है।
उत्तम श्रेणी के लोग
उत्तम श्रेणी के लोग अपना कार्य प्रारंभ करते हैं। और परिणाम तक उस कार्य को नहीं छोड़ते। इस प्रकार के लोग विघ्नों के भय से कभी भी घबराते नहीं। समस्याएं आने पर भी उनका डटकर सामना करते हैं। और अपने कार्यों को उनके परिणाम तक पहुंचा देते हैं। जिससे इस प्रकार के लोग समाज के उत्थान में , स्वयं के उत्थान में, और राष्ट्र के उत्थान में सहयोगी बनते हैं। यदि उत्तम श्रेणी के लोग अर्थात् कार्य करने वाले लोग जो कार्य एक बार प्रारंभ करने के पश्चात समस्याओं के आने पर कार्य को नहीं छोड़ते । कर्तव्यनिष्ठ , कर्मठ और सुखों का भोग करने वाले होते हैं। क्योंकि किसी भी कार्य में पूरे मनोयोग से किया गया परिश्रम व्यर्थ नहीं होता।
निरंतर और सार्काथ कार्य करने वाला सफल होता है।
उत्तम श्रेणी के लोग अपने कार्य के मध्य में आने वाली समस्याओं का निवारण करते हुए अपने कार्य को पूर्ण करते हैं।अतःवे मनुष्य इस संसार में अपनी स्थिति को बनाए रखने में समर्थ होते हैं। अतः एक व्यक्ति को कार्य आरंभ करने के पश्चात उसे मध्य में छोड़कर पलायन नहीं करना चाहिए। क्योंकि धैर्य का प्रतीक्षा का और परिश्रम का फल सदैव मीठा होता है। और आपके पूर्ण मनोयोग से किए गए एक कार्य से कई अन्य लोगों का ही लाभ होता है
अतः प्राथमिकताओं के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपने कार्य समय पर कर चाहिए। तथा उन्हें परिणाम तक पहुंचाना चाहिए ।